Excellence & Etiquette of Repentance Tauba & Istighfar Hindi | तौबा व इस्तेग़फार - उत्तमता व शिष्टाचार

Tauba and Istighfar Repentance - Excellence and etiquette Hindi language तौबा व इस्तेग़फार - उत्तमता व शिष्टाचार


तौबा व इस्तेग़फार - उत्तमता व शिष्टाचार
लेखक: हज़रत मौलाना मुफती हाफिज़ सैय्यद ज़ियाउद्दीन नक्षबंदी खादरी,- महाध्यापक, धर्मशास्त्र, जामिया निज़ामिया, प्रवर्तक-संचालक, अबुल हसनात इसलामिक रीसर्च सेन्टर

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Tauba and Istighfar Repentance - Excellence and etiquette Hindi language तौबा व इस्तेग़फार - उत्तमता व शिष्टाचार

परिचय

 

हमे इस बात से अच्छी प्रकार से अनुभव है हम अल्लाह तआ़ला के बन्दे हैं तथा अल्लाह के ग़ुलाम (दास व सेवक) है।  एक गुलाम को चाहिए के वह अपने आखा (स्वामी व सरदार) का पालन करें, परन्तु हमारी स्थिति इस के विरूद्ध है। 

 

हम अल्लाह तआ़ला तथा इस के हबीब सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम का आज्ञापालन व वश्यता से दुर होते जा रहे हैं।  दिन-दैनिक हम पापों के दलदल में पंसते जा रहे हैं।  क़दम उठता है तो बुराई कि ओर उठता है।  नज़र पढती है तो बुरा परिदृश्य देखते हैं, ज़बान (जीभ) खुलती है तो बदकलामी व बुरी भाषा का उपयोग करते हैं। 

 

पापों कि अधिकता तथा आज्ञालंघन के कारण दिलों पर श्यामलता छा जाती है तथा हम रहमत इ़लाही से दूर होते जाते हैं।  अल्लाह तआ़ला से नज़दीकी प्राप्त करने के लिए हमें सब से प्रथम तौबा (पछतावा व पश्चाताप) करनी चाहिए, पापों पर लज्जित व संकुचित के आंसू बहाने चाहिए। 

 

वास्तव में तौबा यह है के पाप को छोडे दें, अपने किए हुए पाप पर लज्जित हों तथा भविष्य में पाप ना करने का पचन लें। 

 

सत्य मन से तौबा करने वाले सदस्य के सत्य में अल्लाह तआ़ला ने यह गवाही दी है के वह इन्हें अपनी विशेषत दानशीलता व मुहब्बत से दान करें, अल्लाह तआ़ला का आदेश हैः-


भाषांतरः- निस्संदेह अल्लाह तआ़ला तौबा करने वालों तथा पवित्र व शुद्ध (स्वच्छता से) रहने वालों को मित्र रखता है। 

 

(सुरह अल बक़रा: 02:222) 

 

तौबा व इस्तेग़फार (मुक्ति) करने वाले भाग्यशाली तथा नसीबवर को अल्लाह तआ़ला ना केवल पसंद फरमाता है बल्कि इन के पापों को बी क्षमा फरमाता है तथा इन्हें वरदान वाली, जन्नत दान फरमाता है।  अभी खुत्बे में जिस आयत मुबारक का वर्णन किया गया है इस में अल्लाह तआ़ला आदेश फरमाता हैः- 

 

भाषांतरः- ऐ ई़मानवालों!  अल्लाह तआ़ला के दरबार में सत्य दिल से तौबा करो!  संभव है के तुम्हारा रब तुम्हारे पाप क्षमा फरमा देता तथा तुम्हें जन्नत के ऐसे बाग़ों में प्रवेश फरमाएगा जिन के नीचे नहरें बह रही होंगी। 

 

(सुरह अल बक़राः 02:08) 

 

बन्दों कि ओर से उपेक्षा के कारण, अज्ञानचा व अनभिज्ञता के कारण या नफ्स कि साजिश के कारण उन से जो बुराइंयां घटित हो गई हैं इस आयत में उन पापों से बाज़ रेहने।  इस पर शर्मिन्दा होने तथा सत्य दिल तौबा करने का आदेश दिया जा रहा है।


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सत्य तौबा किसे कहते हैं ? 

  

इ़माम जलालउद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि अलैह ने अपनी किताब दुर्रे मन्सूर रिवायत निम्नलिखित वर्णन की हैः-

  

भाषांतरः- इ़माम इ़ब्न मरदूय ने सैयदना अबदुल्लाह बिन अ़ब्बास रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु कि रिवायत अनुवाद किया है, आप ने फरमायाः हज़रत मआ़ज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआ़ला अन्हु ने हज़रत नबी अकरम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम से निवेदन किया, या रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम!  सत्य तौबा क्या है?  सरकार दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने आदेश फरमायाः- सत्य तौबा यह है के बन्दा इस पाप पर लज्जित हो जाए जिस का इस ने स्वीकार किया, अल्लाह के दरबार में क्षमा चाह कर फिर कभी वह पाप कि ओर ना लौटें, जिस प्रकार दूध थन में वापिस नहीं लौटता। 

 

(दुर्रे मन्सूर, सुरह अल तहरीम- 08) 

 

जब बन्दा सत्य तौबा कर लेता है तो अल्लाह तआ़ला इस कि तौबा अवश्य स्वीकार फरमाता है।  जैसा के अल्लाह तआ़ला का आदेश हैः-

 

भाषांतरः- तथा वही है जो अपने बन्दों की तौबा स्वीकार करता है तथा बुराइयों को क्षमा करता है, हालांके वह जानता है, जो कुछ तुम करते हो। 

 

(सुरह अश शूराः 42:25)

 

मानव के भीतर 3 प्रकार कि क्षमताएं व शक्ति पाई जाती हैं। 

(1)- मलकुती शक्ति।  (2)- हैवानी शक्ति।  (3)- शेहवानी शक्ति। 

मानव पर जब मलकुती शक्ति प्रभावित रहती है तो वह फरिश्ते के गुण बन जाता है तथा इस से भले कर्म प्रकट होते हैं वह नेकी व भलाई कि ओर आकर्षित होता है। 

  

तथा जब हैवानी शक्ति का प्रभाव अधिक होता है तो लडाई-झगडा करना, फसाद-बिगाड पैदा करना तथा दुसरों को चोट व नुकसान पहुंचानाः इस प्रकार के बुरे कर्म इस से प्रकट व परिणाम होते हैं तथा जब शेहवानी शक्त अपना कार्य करने लगती है तो अल्लाह के अधिकार कि पामाली, इ़बादात से उपेक्षा तथा हराम कारियों का प्रकट होने लगता है। 

 

अल्लाह तआ़ला ने मानव को नेकी करने तथा बुरे से दूर रहने कि चेतावनी फरमाई, मानव को संसार में भेज कर इस के जीवन को कसौटी व परीक्षा का माध्यम बनाया तथा संसार को इस के लिए परीक्षा का स्थान बनाया। 

 

इस विश्व में भला व अच्छा करने वालों से आखिरत (मरणोत्तर जीवन) कि उच्च वरदान (नेअ़मतों) का वचन फरमाया तथा बदकारियों तथा पापों को दौज़ख (नरक) के आतिश से डराया। 

 

सुरह आल इ़मरान में अल्लाह तआ़ला आदेश फरमाया हैः-

 

भाषांतरः- तथा जिनकी स्थिति यह है कि जब वे कोई खुला पाप कर बैठते हैं या अपने आप पर अत्याचार करते हैं, तो अल्लाह तआ़ला उन्हें याद आ जाता है तथा वे अपने पापों कि क्षमा चाहने लगते हैं- तथा अल्लाह तआ़ला के अतिरिक्त कौन है, जो पापों को क्षमा कर सके?  तथा जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते। 

 

(सुरह आले इ़मरानः 03:135) 

 

इस आयत करीमा में पापी व दोषी को यह शिक्षा दी गई के यदि कोई पापों तथा दोषों में व्यस्त हों तथा अपनी जानों पर अत्याचार करें तो अल्लाह तआ़ला के ज़िक्र को अपना वज़ीफा बना लें। 

 

इस्तेग़फार (मुक्ति व क्षमा) कि कसरत करें तथा अपनी बेराह व बुरे कर्म पर पश्चाताप के आंसू बहाएं।  अल्लाह तआ़ला से क्षमा के लिए निवेदन करें तथा बख्शिश का द्वार को दस्तक दें तो निस्संदेह अल्लाह तआ़ला इन्हें बख्शिश का परवाना दान फरमाएगा तथा अवश्य स के --- का क़लम चलाएगा। 

 

इ़माम अबु अल लैस रहमतुल्लाहि अलैह अपनी किताब तफसीरुल बहरुल उ़लूम में सुरह आले इ़मरान कि आयत संख्याः 135 में अल्लाह तआ़ला आदेश फरमाया हैः- भाषांतरः- पापों से क्षमा कि इच्छा करते हैं) के प्रति फरमाते हैः-


भाषांतरः- इस से मुराद ज़बान से इस्तेग़फार करना तथा मन से लज्जित होना है।  वर्णित है के मन में लज्जित हुए बिना केवल ज़बान से इस्तेग़फार करना झूठो कि तौबा है।  हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैह से वर्णित है के आप ने फरमायाः हमारे इस्तेग़फार पर भी खूब इस्तेग़फार करने के आवश्यकता है। 

 

(तफसीर बहरुल उ़लूम, सुरह आले इ़मरानः 135)


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पापी तौबा करते ही पवित्र हो जाता है

 

इस्तेग़फार वास्तव में पापोंसे क्षमा कि कामना करने को कहते हैं।  इस्तेग़फार ग़फर से बना है, इस का अर्थ छिपाना, रहस्य रखना तथा बचाना है। 

 

अल्लाह तआ़ला कि कृपा व करम तथा इस कि बख्शिश व दान कि शान प्रकट होती है के इस ने तौबा व इस्तेग़फार को बन्दों के पापों का प्रतिकर (कफ्फारा) बनाया तथा इस्तेग़फार करने वालों को अपनी वसीअ़ रहमत से प्रदान की प्रमाण दान फरमाई। 

 

इस कि शान करम नवाज़ी कियोंकर वर्णन हो सके?  वह रहमत वाला पालनहार अपने पापी बन्दों को मुक्ति (क्षमा) का सहारा देता है तथा इन्हें अपनी --- से इस प्रकार अनुदान करता है के अपराधी को अपने दरबार में अपराध कि प्रतिष्ठा से याद नहीं फरमाता जैसा के संसार में किया जाता है। 

 

उदाहरण यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है तथा इस से बाज़ आ जाता है तथा इस पर लज्जित व निन्दनीय करता है।  तब भी लोग इस के दोष प्रकट करते हैं।  लगातार इस की बुराई को वर्णन करते हैं।  परन्तु सरकार दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम कि कृपा है के आप ने पापियों को शान व रहमत के प्रतिभा का सदखा दान फरमाते हुए यह आदेश फरमायाः-

 

भाषांतरः- पाप से तौबा करने वाला ऐसा है जैसा के इस ने पाप किया ही नहीं। 

 

(सुनन इ़ब्न माजह, हदीस संख्याः 4391) 

 

जब अपने दोषों परे में शर्माता हुं

एक विशेश सुरूर हृदय में पाता हुं

तौबा करता हुं जब पाप से अमजद

पूर्व से अधिक पवित्र हो जाता हुं। 

(हज़रत अमजद हैद्राबादी)


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मुक्ति की प्रार्थना का तरीक़ा

 

यदि किसी मानव से पाप संपादन हो जाए तो इस के लिए ज़बान से अस्तग़फिरुल्लाह कहना तथा या सतेज उद्देश्य कर लेना अवश्य है के भविष्य में कभी पाप नहीं करुंगा।  जो नमाज़ें खज़ा हुई हैं, जो रोज़े छूट गए हैं, इन्हें संपादन करना तथा बन्दों के जो अधिकार अपने ऊपर अनिवार्य है इन्हें संपादन करना या इन्हें क्षमा करवा लेना, फिर इस के साथ मन में लज्जित व निन्दनीय हो तथा मन पर पशेमानी का गुज़र भी हो। 

 

इतने कर्म से अवश्य तौबा तो हो जाती है, केवल बावुज़ू हो कर तौबा कि नियत से नफ्ल संपादन करें तथा अल्लाह तआ़ला के दरबार में नियुक्त हो कर मुक्ति व मग़फिरत कि इच्छा व कामना करें, कियों के बन्दे के लिए अल्लाह के दरबार तथा इस कि कृपा व रहमत व एहसान के सिवा कोई और स्थान ही नहीं जहाँ वह अपना सर छिपाएं ता क्षमा का निवेदन करें। 

 

अल्लाह तआ़ला अपने पापी बन्दों को सजा देने पर क्षमता रखता है।  इस के बावजूद खुदाए तआ़ला कि कृपा व रहमत वाली ज़ात पापियों को प्रमाण देती है के मेरे बन्दो आऔ!  के मै रहमत की चादर तुम पर उडाऊं, तुम्हें आशीर्वाद के साये में रखु तथा तुम्हें बख्शिश व मग़फिरत से प्रदान करुं। 

 

परन्तु बन्दे में इन वरदान को प्राप्त करने कि योग्यता कैसे पैदा होगी तथा बन्दा मौला तआ़ला कि बख्शिश अपने दामन में कैसे भरेगा?  इस सिलसिले में अहले बैत किराम व सहाबा किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम के पावन व प्रिय जीवन हमारे लिए मार्गदर्शन की राह हैं।  जामेअ तिरमिज़ी में हदीस पाक हैः-

 

भाषांतरः- अर्थात हज़रत अ़ली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से वर्णित है, आप ने परमायाः सैयदना अबु बक्र सिद्दीख रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने मुझ से वर्णन फरमाया तथा सत्य फरमायाः- हज़रत मैं ने हज़रत रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुनाः-

 

जो व्यक्ति भी पाप करे, फिर उठ कर पवित्रता प्राप्त करे फिर नमाज़ पढ कर अल्लाह तआ़ला से मग़फिरत (मुक्ति) कि कामना करे, अल्लाह तआ़ला इस को क्षमा फरमाएगा। 

 

(जामे तिरमिज़ी, हदीस संख्याः 408/3276)


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 तौबा - सत्य दिल से की जाए! 

 

केवल ज़बान से तौबा-तौबा कह लेने से कया तौबा होती है?  हरगिज़ नहीं!  बल्कि बुराई को संपादन करने पर बन्दा सत्य दिल से लज्जित व निन्दा करना तथा अपने किए पर पश्चाताप व पछतावा करें! 

 

इस सिलसिले में हज़रत शैखुल इसलाम आ़रिफ बिल्लाह इ़माम अनवारुल्लाह फारुखी संप्रवर्तक जामिया निज़ामिया रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैः-

 

यह बात याद रहे के ज़बान से तौबा-तौबा या अतूब इल्लाह कह देना काफी नहीं।  बल्कि धर्म के महान व्यक्ति (बुज़ुर्गाने दीन) के नज़दीक यह खुद पापा है।  जैसा के मन कि शक्ति जो हज़रात सूफिया के नज़दीक उच्च पुस्तक है तथा बुज़ुर्गाने दीन इस के आभास कि चेतावनी फरमाया करते थे। 

 

इस में लिखा है के कुछ बुज़ुर्गों का कथन हैः- जब मैं अस्तग़फिरुल्लाह ज़बान से कहता हुं तथा मन में निन्दा नहीं होती तो इस बात से इस्तेग़फार करता हुं तथा अल्लाह तआ़ला से मग़फिरत मांगता हुं, तथा लिखा है के हदीस शरीफ में है के ज़बान से इस्तेग़फार करना बिना इस के दिल में निन्दा ना हो, झूठों कि तौबा है। 

 

तथा हज़रत राबिया बसरी रहमतुल्लाहि अलैह का कथन अनुवाद किया है के हमारा अस्तग़फार करना खुद दूसरे अस्तग़फार का आश्रित (मोहताज) है।  इस प्रकार तौबा इस कि मोहताज है के इस से तौबा की जाए। 

 

(मखासिदुल इसलाम, अंक 8, पः 124)


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रंज व दुःख का इज़ाला इस्तग़फार

  

आज संसारिक सरलता का ध्यान तथा धन व सम्पत्ति जमा करने कि चिन्ता हम लोगों में शक्तिशाली जडें बना चुकी हैं।  इस विचार कि ना हलाल व हराम कि तमीज़ बाखी है ना अच्छाई तथा बुराई में अंतर कि समझ।  इस बदअ़मली का दुष्टता का परिणाम विपत्ति व कठिनाई, रंज व दुःख तथा रिस्ख में दरिद्रता कि रुप में सामने आ रही हैं। 

 

तथा आए दिन हम लोग धर्म से दुर हो कर ऐश व सुखसाधन के दलदल में फंसते जा रहे हैं, इन सम्पूर्ण रोग व परेशानियों का उपचार विद्वान आ़लम हज़रत रसुल अकरम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने एक ही दवा रखा तथा वह दवा इस्तेग़फार है!  अर्थात इ़माम तबरानी कि मुअ़जम कबीर में हदीस हैः-

  

भाषांतरः- हज़रत सैयदना रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने आदेश फरमायाः- जिस ने इस्तेग़फार को अनिवार्य कर लिया तो अल्लाह तआ़ला इस के लिए हर प्रकार के ग़म व दुःख से राहत में रखेगा।  हर दरिद्रता से निकलने कि स्थिति पैदा फरमा देगा तथा इस को ऐसे स्थान से रिस्ख देगा जहाँ से वह विचार भी नहीं रखता। 

 

(अल मुअ़जम अल कबीर लिल तबरानी, हदीस संख्याः 1051) 

 

इसी प्रकार एक और हदीस मे हैः-

 

भाषांतरः- जिस के रिस्ख (अवलंब व संपोषण) में आधिक्य ना हो वह कसरत से अल्लाह कि बडाई बयान करता रहे तथा जिस के रंज व दुःख अधिक हों वह कसरत से अस्तेग़फार किया करें। 

 

(जामेअ़ अल हादीस लिल सुयूती, हदीस संख्याः 45658) 

 

संसार का मामला हो या आखिरत का मामला, अस्तग़फार हर एक के लिए दवा है, समस्या व कठिनाई हो या विपत्ति व बलास रिस्ख में तंगी हो या बेरवांगारी, सम्पूर्ण परेशानियों का उपाय अस्तग़फार है। 

 

बारगाह इ़लाही में सम्मेलित होना तथा तौबा करना इस कि प्रसन्नता का कारण भी है माध्यम भी है तथा वरदान से प्रदान का माद्यम भी।


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इस्तग़फार - बदज़ुबानी के वबाल से बचने का माध्यम

  

मानव के सम्पूर्ण भाग में सब से अधिक अपकारी ज़बान (जीभ) से होता है।  ज़बान के कारण से मनुष्य जन्नती (स्वर्गीय) भी होता है तथा दोज़खी (नरक का) भी। 

  

इस के नुकसानात से बचने के लिए अस्तग़फार मंजिल के अनुसार ढाल है।  सैयदना अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से वर्णित हैः-

 

भाषांतरः- एक व्यक्ति सरकरा दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम कि सेवा में उपस्थित हो कर निवेदन किएः या रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम!  मैं कछोर मानव हुं तथा मेरे परिवार के साथ अकसर कठोर व्यवहार होता है तो सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः तुम अस्तग़फार कियों नहीं करते, अवश्य मैं भी दिन व रात में 100 बार अल्लाह तआ़ला के दरबार में अस्तग़फार करता हुँ। 

 

(अल मुअ़जम अल औसत, लिल तबरानी, हदीस संख्याः 3301) 

 

हमें यह बात याद रखनी अवश्य है के सरकार दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम का अस्तग़पार करना साधारण मनुष्य के प्रकार नीहं, इस में संदेह नहीं के आप हज़रत सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को तौबा कि कोई आवश्यकता ना थी, कियों के आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) से पाप संपादन ही नहीं हुआ, परन्तु बावजूद इस के आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) इस्तेग़फार करते थे। 

 

हनफी, मालिकी, शाफअ़ आदि सम्पूर्ण विद्वान का इस बात पर सन्तुष्टता है के पैग़म्बरों (अलैहिस सलाम) छोटे व बडे सम्पूर्ण पापों से पवित्र व मासूम हैं।  इस को स्पष्ट व प्रत्यक्ष इ़माम खुरतुबी ने किया है- (तफसीर खुरतुबी, अंक 1, पः 308) 

 

तथा जहाँ कहीं सरकार दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम तथा अन्य पैग़म्बर इसलाम (अलैहिस सलाम) से संबंधित अस्तग़फार का ज़िक्र आया हैः इस से मुराद दर्जे में अधिक बुलंदी का निवेदन करना है। 

 

जैसा के अल्लाह तआ़ला का वचन हैः-

 

भाषांतरः- तथा (ऐ नबी अकरम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) आप के लिए हर आनेवाली (अवधि व क्षण) पिछले पल से उत्तम है। 

 

(सुरह अज़-ज़ुहाः 93:04) 

 

बावजूद यह के हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम पापों से मासूम (निष्छल व निरपराध) हैं परन्तु आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) ने इस प्रकार कि दुआएं तथा अस्तग़पार का प्रबन्ध उम्मत (समुदाय) कि शिक्षा के लिए फरमाया है। 

 

आप सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम कि उच्च जात कि उत्तमता व विशिष्टता का कया कहना, केवल आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) के नाम मुबारक तथा ज़िक्र शरीफ में अल्लाह तआ़ला ने वह बरकत व आशीर्वाद रखा है के आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) के मुबारक नाम का वसीला (द्वारा) आ जाए तो दोष व भूल क्षमा हो जाती हैं। 

 

आप (सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम) का ज़िक्र शरीफ आ जाए तो दुआएं स्वीकार हो जाती हैं।  जैसा के जामे तिरमिज़ी शरीफ में हदीस पाक हैः-

  

भाषांतरः- हज़रत सैयदना उ़मर फारुख रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से वर्णित है, आप ने फरमायाः दुआ़ इस समय तक आकाश व धरती के बीच रुकी रहती है, ऊपर कि ओर नहीं जाती जब तक के तुम अपने नबी करीम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम कि पावन सेवा में दुरूद शरीफ पेश ना करों। 

 

(जामे तिरमिज़ी, हदीस संख्याः 488)


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पवित्र नाम का वसीला 
तौबा कि स्वीकारण होना प्रत्याभूति

  

सैयदना आदम अलैहिस सलाम ने सरकार सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम के वसीले से दुआ़ फरमाई थी, अल्लाह तआ़ला ने आप कि दुआ़ स्वीकार फरमाई। 

 

10 अधिप्रमाणित व वास्तविक पुस्तकें व अनुवाद के सन्दर्भ से इस वर्णित को उल्लेख किया जाता है मुसतदरक अ़ला सहिहैन आदि में हदीस पाक उल्लेख हैः-

 

भाषांतरः- हज़रत सैयदना उ़मर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से वर्णित है, आप ने फरमायाः हज़रत रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने आदेश फरमायाः जब हज़रत आदम अलैहिस सलाम से लग़ज़िश हुई तो उन्हों ने अल्लाह तआ़ला कि सेवा में विनती कीः अए मेरे रब!  मैं हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम के वसीले से दुआ करता हुँ तु मुझे बख्श दे, अल्लाह तआ़ला ने फरमायाः ऐ आदम!  तुम महुम्मद सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम को कैसे जानते हो जबके मैं ने इन्हें मानवता के पैकर में पैदा नहीं किया?  हज़रत आदम अलैहिस सलाम ने निवेदन कियाः ऐ मेरे रब!  तुने जब मुझे अपने दस्त क़ुदरत से पैदा किया तथा अपनी विशेष आत्मा व रूह मुझ में फूंकी तो मैं ने अपना सर उठाया तो मैं अर्श खवाइम पर ला इलाहा इल्लाहु मुहम्मदुर रसुल अल्लाह लिखा हुआ देखा, मैं जान कया के तुने अपने पवित्र नाम के साथ इन्हीं का पावन नाम मिलाया है जो सारे निर्माण (मक़लुख) में सर्वश्रेष्ट तुझे प्रिय व पसंदीदह व महबुब है। 

अल्लाह तआ़ला ने फरमायाः ऐ आदम!  तुम ने सत्य कहा, निस्संदेह वह सारी निर्माण में मेरे पास सर्वश्रेष्ट महबूब है।  तुम इन के वसीले से दुआ़ किया करो!  अवश्य मैं ने तुम्हें मग़फिरत दी है, तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ना होते तो मैं तुम्हें पैदा ना करता। 

 

(मुसतदरक अ़ला सहिहैन, हदीस संख्याः 4194, अल मुअ़जम अल औसत लिल तबरानी, हदीस संख्याः 6690, अल मुअ़जम अल सग़ीर लिल तबरानी, हदीस संख्याः 989, दलाइल नबुवह लिल बैहखी, हदीस संख्याः 2243, मजमअ़ अज़ ज़वाइद, हदीस संख्याः 13917, जामअ़ हादीस वल मरासील, हदीस संख्याः 33457, कंज़ुल उ़म्माल, हदीस संख्याः 32138, अर रद्दुल मंसूर, 37, तफसीरुल कश्फ वल बयान लिल शुअ़लमी, सुरह अल बक़रा 37, तफसीर रुह अल बयान, अंक 2, पः 376, सुरह अल माइदहः 16)


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इस्तेग़फार से संबंधित एक संदेह का प्रकाशन

  

अल्लाह तआला के बन्दों को अपने मालिक अल्लाह तआ़ला से संबंध व नाता स्थापित करने के लिए, पापों पर सत्य दिल से निन्दा व लज्जित हो कर अल्लाह के दरबार में तौबा व इस्तेग़फार (पश्चाताप व मुक्ति) अनिवार्य व अवश्य है। 

 

ताकि वह निकटता व नज़दीकी के अनमोल खज़ाने से धनी हो सकें।  अर्थात इस्तेग़फार कि महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठा, सिद्धांत व शिष्टाचार वर्णन करते हुए हज़रत सैयदी अबुल हसनात मुहद्दिस देक्कन रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैः-

 

भाषांतरः- कहे औऱ दिल में निन्दा व लज्जित हो कर अल्लाह तआ़ला से क्षमा मांगे, यह कया कठिन कार्य है? 

 

सम्भवतः यह ध्यान हो के अब तौबा करें फिर कोई पाप हो जाए तो कया लाभ?  यह शैतानी वसवसा (विचारधारा) है।  सत्य दिल से तौबा करो तथा आगामी पाप ना करने का निश्चित उद्देश्य कर लो, इनशाअल्लाह तआ़ला तुम से कोई पाप संपादन नहीं होगा। 

 

भाषांतरः- पापों से तौबा करने वाला ऐसा है जैसा के इस से कोई पाप ही ना हुआ हो। 

 

(सुनन इ़ब्न माजह, किताब अल ज़हद, हदीस संख्याः 4391, मजमअ़ उल ज़वाईद, अंकः 10, पः 200) 

 

तौबा व इस्तेग़फार करने से इस समय तक के सम्पूर्ण पाप क्षमा हो गए, ना केवल पाप क्षमा हुए बल्कि विलेख पुस्तक (आ़मलनामा) से भी मिटा दिए गए। 

 

मनुष्य के आवश्यकता से यदि फिर पाप हो गया तो पिर क्षमा मांगलें। 

 

बिना तौबा व इस्तेग़फार जो इ़बादत की जाती है वह व्यर्थ व अपशिष्ट तो नहीं जाती परन्तु मग़फिरत (मुक्ति) मांगने के बाद जो इ़बादत की जाती है इस कि शान ही कुछ और होती है। 

 

अधिकतर लोग केवल ज़बान से इस्तेग़फार कहते हैं इस से कया होता है?  हदीस शरीफ में इस से संबंधित जो शब्द निकले हैं वह कहें!  जो यह हैः-

अस्तग़पिरुल्लाहल अ़ज़ीमा अल लज़ी ला इलाहा इल्लाहुवल हइयुल खइयूम वा तूबू इलैह। 

 

भाषांतरः- यह इस्तेग़फार याद कर लो, यदि यह या और कोई इस्तेग़फार याद ना हो सके तो केवल अस्तग़फिरुल्लाह कह दिया करो, इस का अर्थ यह है केः अल्लाह मैं आप से क्षमा मांगता हुँ। 

 

आप ने इस्तेग़फार से संबंधित यह शर्ते (प्रावधान) वर्णन फरमाए हैः-

 

(1)- हृदय व मन से क्षमा मांगना तथा ज़बान से इस्तेग़फार करते रहना। 

 

(2)- बार बार क्षमा मांगना तथा इस्तेग़फार करते रहना। 

 

(3)- जो पाप हुए हैं भविष्य में ना करने का उद्देश्य कर लेना। 

 

जो नमाज़ें खज़ा हुई हैं उन्हें संपादन कर देना।  तथा इ़बादत के अधिकार संपादन करना या माफ करवा लेना। 

 

अस्तग़फार का एक प्रकार यह भी है के मन में निन्दा व लज्जित हो कर ज़बान से इस्तेग़फार कहना।  तथा यह भी इस्तेग़फार है के इन स्थान पर जाया करें जहाँ मग़फिरत (मुक्ति) तथा नेक व भले कर्म कि मार्गदर्शन होती हैं। 

 

उदाहरण जहाँ अल्लाह का ज़िक्र या प्रवचन का समारोह व सम्मेलन हों।  संत व बुज़ुर्गों कि हम नशीनी भी बडा वरदान हैं। 

 

(मवाइज़ हसना, अंकः 2)


***


मुख्य इस्तेग़फार-
इ़माम आ़ज़म कि अपने नंदन को वसीयत

  

अहादीस शरीफ में इस्तेग़फार के अनेक शब्द आए हैं।  यहाँ सहीह बुखारी शरीफ के उल्लेख से मुख्य इस्तेग़फार (सैयदुल इस्तेग़फार) ज़िक्र किया जा रहा है। 

 

मुख्य इस्तेग़फार में कियों के संसार व आखिरत दोनों से संबंध दुआएं जमा हैं इसी लिए इस का नाम सैयदुल इस्तेग़फार है।  अहादीस शरीफ में मुख्य (प्रथम) इस्तेग़फार के बहुत विशिष्ठता वर्णन किए गए हैं, तथा हज़रत इ़माम आज़म अबु हनीपा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने भी अपने बेटी नंदन हम्माद रहमतुल्लाहि अलैह को अल्लाह के ज़िक्र तथा दुरूद शरीफ पढने के सात मुख्य इस्तेग़फार पढने का अनुदेश फरमाया। 

 

अर्थात आप फरमाते हैः-

  

भाषांतरः- अल्लाह का ज़िक्र कसरत से करो तथा हज़रत रसुल अल्लाह सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम पर कसरत से दुरूद शरीफ पढो तथा मुक्य इस्तेग़पार में व्यस्त रहो।  जिस कि भाषांतर यह हैः- ऐ अल्लाह!  तु ही मेरा पालनहार है।  तेरे सिवा कोई मअ़बूद नहीं, तु ने मुजे पैदा किया तथा मैं तेरा बन्दा हुँ तथा मैं बाखद्र अपनी शक्ति व क्षमता के तेरे वचन व पैमान पर स्थापित हुँ।  मैं तुझ से अपने बुरे कर्म के भय से पनाह मांगता हुँ, तुने मुझ पर जो इनाम किए हैं, मैं उन को अंगीकार करता हुँ तथा अपने पाप का परिचय व प्रावेशिक हुँ, तु मुझे बख्श दे कियों के तेरे सिवा कोई पापों का बक़्सने वाला नहीं। 

 

(सवाईक़ बे-बहाए, इ़माम आज़म अबु हनीफा रहमतुल्लाहि अलैह, पः 148-149) 

 

मुख्य इस्तेग़फार (सैय्यदुल इस्तेग़फार) कि विशिष्टता व उत्तमता वर्णन करते हुए सरकार दो आ़लम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम ने आदेश फरमायाः-

 

भाषांतरः- जो व्यक्ति सम्पूर्ण विश्वास के साथ इस इस्तेग़फार (मुक्ति) को दिन में पढे तथा रात होने से पूर्व इसी दिन देहान्त कर जाए तो वह जन्नत जाति में शामिल होगा।  तथा जो रात में पडे फिर सवेरे होने से पूर्व देहान्त कर जाए तो वह जन्नत जाति में से होगा। 

 

(सहीह बुखारी, हदीस संख्याः 6306) 

  

अल्लाह तआ़ला अपने हबीब करीम सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम के सदखे व तुफैल हमें रिस्ख हलाल, सिद्ख मखाल का मार्गदर्शन दे, हमें अपने पापों पर इस्तेग़फार (पश्चाताप व पछतावा) करने का मार्गदर्शन दान फरमाए तथा हमारे पापों को बख्श दे। 

  

आमीन बिजाही सैयिदिना ताहा वयासा सल्लल्लाहु तआ़ला अलैहि वसल्लम 

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